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Monday, 29 May 2017

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हर्षवर्धन:-(590-647 ई.)Image result for हर्षवर्धन की मृत्यु
(वंश-थानेश्वर का पुष्यभूति वंश)


जब हिंदुस्तान के उत्तर पश्चिम में  हूणों  का आतंक अपने चरम पर था। तब हूणों  को पराजित करने वाले शासक हर्षवर्धन के पिता थानेश्वर नामक राज्य के शासक प्रभाकरवर्धन थे जिनसे गंधारप्रदेश के शासक भी डरते थे। इनका राज्य पश्चिम में व्यास नदी से पूर्व में यमुना नदी तक था इन्ही पराक्रमी राजा की संतान सम्राट  हर्षवर्धन थे। 
हर्षवर्धन एक मात्र हिन्दू शासक थे जिन्होंने पुरे उत्तर भारत( पंजाब छोड़कर )पर शासन किया। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.।
इनके बड़े भाई का नाम राज्य वर्धन था तथा बहन का नाम राज्य श्री था। 
बहन का विवाह कन्नौज राज्य  के राजा अवन्ति वर्मा के बड़े बेटे  गृहवर्मन के साथ हुआ था।  
हर्षवर्धन के बड़े भाई राजयवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ई 0 में ये थानेश्वर के राजा बने। हर्ष के बारे में में हमें बाणभट की रचना हर्षचरित में हमें व्यापक जानकारी मिलती है हर्ष ने लगभग ४१ वर्षो तक एक प्रतापी एवं न्याय प्रिय राजा के तौर पर शासन किया।इन्होने अपनी राजधानी कन्नौज को बनाया जो इस समय उत्तर प्रदेश का एक जिला है।  इन्ही ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधर कश्मीर नेपाल बल्लभीपुर तक कर लिया था। इन्होने आर्यवृत  को भी अपने अधीन कर लिया। ये बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित हो गए थे। 
ह्वेनसांग(630 ई०से 640 ई० तक ) इन्ही के समय में भारत आये जिन्हे यात्रियों का राजकुमार  निति का पंडित वर्त्तमान शाक्यमुनि भी कहा जाता है हर्ष के बारे में ह्वेनसांग से विस्तृत जानकारी मिलती है।ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में क़रीब 5,000 हाथी, 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को चाट एवं भाट, अश्वसेना के अधिकारियों को हदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था।

इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।
643 ई. में चीनी सम्राट ने 'ल्यांग-होआई-किंग' नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल 'लीन्य प्याओं' एवं 'वांग-ह्नन-त्से' के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया। तीसरे दूत मण्डल के भारत पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई।

हर्ष का शासन प्रबन्ध:-

हर्षकालीन प्रमुख अधिकारी
अधिकारीविभाग
महाबलाधिकृत  सर्वोच्च सेनापति/सेनाध्यक्ष
बलाधिकृतसेनापति
महासन्धि विग्रहाधिकृतसंधिरु/युद्ध करने संबंधी अधिकारी
कटुकहस्ति सेनाध्यक्ष
वृहदेश्वरअश्व सेनाध्यक्ष
अध्यक्षविभिन्न विभागों के सर्वोच्च अधिकारी
आयुक्तकसाधारण अधिकारी
मीमांसकन्यायधीश
महाप्रतिहारराजाप्रासाद का रक्षक
चाट-भाटवैतनिक/अवैतनिक सैनिक
उपरिक महाराजप्रांतीय शासक
अक्षपटलिकलेखा-जोखा लिपिक
पूर्णिकसाधारण लिपिक
हर्ष स्वयं प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेता था। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् गठिन की गई थी। बाणभट्ट  के अनुसार अवन्ति युद्ध और शान्ति का सर्वोच्च मंत्री था। सिंहनाद हर्ष का महासेनापति था। बाणभट्ट ने हर्षचरित  में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है-
  1. अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री।
  2. सिंहनाद - हर्ष की सेना का महासेनापति।
  3. कुन्तल - अश्वसेना का मुख्य अधिकारी।
  4. स्कन्दगुप्त - हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी।
राज्य के कुछ अन्य प्रमुख अधिकारी भी थे- जैसे महासामन्त, महाराज, दौस्साधनिक, प्रभातार, राजस्थानीय, कुमारामात्य, उपरिक, विषयपति आदि।

  1. कुमारामात्य- उच्च प्रशासनिक सेवा में नियुक्त।
  2. दीर्घध्वज - राजकीय संदेशवाहक होते थे।
  3. सर्वगत - गुप्तचर विभाग का सदस्य।

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